(दूसरी इकाई) ६. हम उस धरती की संतति है (पूरक पठन)

हम उस धरती के लड़के हैं, जिस धरती की बातें
क्‍या कहिए; अजी क्‍या कहिए; हाँ क्‍या कहिए ।
यह वह मिट्टी, जिस मिट्टी में खेले थे यहाँ ध्रुव-से बच्चे ।
यह मिट्टी, हुए प्रहलाद जहाँ, जो अपनी लगन के थे सच्चे ।
शेरों के जबड़े खुलवाकर, थे जहाँ भरत दतुली गिनते,
जयमल-पत्‍ता अपने आगे, थे नहीं किसी को कुछ गिनते !
इस कारण हम तुमसे बढ़कर, हम सबके आगे चुप रहिए ।
अजी चुप रहिए, हाँ चुप रहिए । हम उस धरती के लड़के हैं …
बातों का जनाब, शऊर नहीं, शेखी न बघारें, हाँ चुप रहिए ।
हम उस धरती की लड़की हैं, जिस धरती की बातें क्‍या कहिए ।
अजी क्‍या कहिए, हाँ क्‍या कहिए ।
जिस मिट्टी में लक्ष्मीबाई जी, जन्मी थीं झाँसी की रानी ।
रजिया सुलताना, दुर्गावती, जो खूब लड़ी थीं मर्दानी ।
जन्मी थी बीबी चाँद जहाँ, पद्‌मिनी के जौहर की ज्‍वाला ।
सीता, सावित्री की धरती, जन्मी ऐसी-ऐसी बाला ।
गर डींग जनाब उड़ाएँगे, तो मजबूरन ताने सहिए, ताने सहिए, ताने सहिए ।
हम उस धरती की लड़की हैं…
यों आप खफा क्‍यों होती हैं, टंटा काहे का आपस में ।
हमसे तुम या तुमसे हम बढ़-चढ़कर क्‍या रक्‍खा इसमें ।
झगड़े से न कुछ हासिल होगा, रख देंगे बातें उलझा के ।
बस बात पते की इतनी है, ध्रुव या रजिया भारत माँ के ।
भारत माता के रथ के हैं हम दोनों ही दो-दो पहिये, अजी दो पहिये, हाँ दो पहिये ।
हम उस धरती की संतति हैं ….