१.३.स्वतंत्रता

जनवरी माह की ठंड भरी एक सुबह । घनेजंगल केबीच खड़ेबूढ़ेबरगद की फुनगी पर एक बूढ़ा तोता, गुनगुनाती धूप सेंक रहा था । सारेछोटेबच्चे आस[1]पास ही खेल रहे थे। आसमान मेंउड़तेहुए गैस के लाल,पीलेगुब्बारों कोदेख एक हल्की मुस्कानउसके चेहरेपर आ गई । पास मेंखेल रहेतोतेकेबच्चे ने इसका कारण जानना चाहा । बूढ़ा तोता कहनेलगा, ‘‘बेटे, बहुत साल पहले की बात है। शाम होनेको थी, हम सभी संगी-साथी अपनेघरों की ओर लौट रहे थे। गैस भरेगुब्बारों का गुच्छा हमारेकरीब सेगुजर रहा था कि अचानक मेरे एक दोस्त नेशरारत करतेहुए मुझेधक्का दिया और मैं बुरी तरह सेगुब्बारों की डोरियों मेंउलझ गया । लाख कोशिश करनेकेबाद भी मैंअपने-आप को छुड़ा न पाया । मैं हवा केझोंकों केसाथ गुब्बारों सहित दूसरी दिशा मेंबहनेलगा । मेरी चोंच, पैर और पंख अपने-अापको छुड़ानेकी कोशिश मेंबुरी तरह लहूलुहान हो गए थे। धीरे-धीरेशाम गहरानेलगी,

गुब्बारों की हवा भी कम होनेलगी और अंत मेंगुब्बारों केसाथ मैंशहर की घनी बस्ती केपीपल वृक्ष की फुनगी पर जा टिका । मैंडोरियों मेंफँसा असहाय हो चुका था। मेरेदोस्तों नेमेरा साथ छोड़ दिया । मोंटूनामक एक लड़का तीसरी मंजिल पर रहता था । जहॉं सेपीपल केपेड़ और उसपर फँसेमुझपरउसकी नजर गई । उसनेघर में पिता सेमुझेछुड़ानेककहा। पिता ने देखा, बचाना आसान काम नहीं है क्योंकि वृक्ष की फुनगी पर आसानी से पहँुचा नहीं जा सकता था । बहुत सोच-विचार के बाद उन्हें एक उपाय सूझा वह पेड़ जहॉं खड़ा था उसके नीचे चारदीवारी थी जिस पर कॉंच लगे थे एक ओर गंदे पानी का नाला बह रहा था ताे दूसरी ओर कचरे का बड़ा सा कूड़ा-दान था । मोंटू के पापा ने लंबी-सी रस्सी उस डाल पर फेंकी और नीचे की ओर खींचते हुए कहा कि अब हम तुमको बचा ही लेंगे । मैं टूटी हुई डाल के साथ कूड़ेदान में आ गिरा । मेरी जान बच गई । मोंटू के पिता जख्मी हालत में मुझे घर ले अाए, मरहमपट्टी की और पिंजड़े में रख दिया ।

 मुझे बड़ा दुख हुअा । मैंने न पानी पीया और न ही चोंच मंे दाना लिया । मोंटू ने रात में पिता जी से १5 अगस्त का महत्त्व पूछा । पिता जी ने कहा कि स्वतंत्रता यानि आजादी अर्थात अपनी इच्छानुसार हर कार्य करने की सुविधा । मोंटू ने सवाल किया कि क्या यह आजादी सभी के लिए होती है । पिता ने बताया कि यह हमसबका अधिकार है । दूसरे दिन सुबह मोंटू मेरे पिंजड़े के पास आया और उसने कहा कि देखो मित्र तुम जल्दी से ठीक हो जाओ तो मैं तुम्हें शीघ्र ही आजाद कर दूँगा। मुझे मोंटू की बात समझ में आ गई थी । कुछ दिनों बाद पंद्रह अगस्त की सुबह मोंटू नए जूते पहने, हाथ में तिरंगा लेकर पाठशाला चला गया। जाते समय मोंटू ने अपना वादा पूरा किया।’’