येरवडा मंदिर 8-११-३२
्यारे मणिलाल, शुभाशीष ।
मैंने जो परिवारिक बोझ तुम्हारे सिर पर दिया है उसका निर्वहन करने में तुम समर्थ हो । मुझे ऐसा लगता है कि तुम पूरे आनंद के साथ इसे उठा रहे हो । मैंने कारागृह में बहुत कुछ पढ़ा है । मेरा ऐसा मानना है कि शिक्षा का अर्थ मात्र अक्षरज्ञान नहीं है । शिक्षा का अर्थ है चरित्र संवर्धन एवं कर्तव्य पालन । तुम्हें आजकल उत्तम शिक्षा प्राप्त हो रही है । मॉं की सेवा हो या भाभी जी की अथवा रामदास एवं देवदास का अभिभावक बनना इससे अधिक अच्छी शिक्षा कौन-सी हो सकती है ? ये कार्य तुम अच्छी तरह से करो तो आधी से भी अधिक शिक्षा पूरी करने जैसा ही है
बेटे को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए । प्रत्येक बच्चे को सत्य, अहिंसा तथा संयम इन गुणों को अपने आचरण में लाना चाहिए । एेसा करते समय उसे आनंद की अनुभूति होनी चाहिए । जब मैं तुमसे भी उम्र में छोटा था तब मुझे अपने पिता जी की सेवा-शुश्रूषा करते समय बहुत आनंद आता था । भौतिक सुख-सुविधाओं की अपेक्षा तुम अगर इन तीन गुणाें को अपने आचरण में लाओगे तो मेरी दृष्टि से तुम्हारी शिक्षा पूरी हुई है । इन त्रिगुणों के बलबूते तुम दुनिया में कहीं भी अपना पेट पाल सकोगे ।
जो शिक्षा प्राप्त करनी है वह दूसरों के काम आए । अपनी शिक्षा में गणित और संस्कृत की ओर अधिक ध्यान दो । तुम्हें संस्कृत की बहुत आवश्यकता है । आगे चलकर इन दो विषयों की पढ़ाई करना कठिन हो जाता है । संगीत के प्रति लापरवाही मत बरतो । हिंदी भाषा के गीतों को एक काॅपी में सुंदर-सुडौल अक्षरों में लिखो । यह संग्रह वर्ष के अंत में बहुत लाभदायी, मूल्यवान होगा ।
बापू के आशीर्वाद