१.६ कुछ स्‍मृतिया

रामनाथपुरम में रहते हुए अयादुरै साेलोमन से मेरे संबंध एक गुरु-शिष्य के नाते से अलग हटकर काफी प्रगाढ़ हो गए थे । उनके साथ रहते हुए मैंने यह जाना कि व्यक्ति खुद अपने जीवन की घटनाओं पर काफी असर डाल सकता है । अयादुरै सोलोमन कहा करते थे-‘जीवन में सफल होने और नतीजों को हासिल करने के लिए तुम्हें तीन प्रमुख शक्तिशाली ताकतों को समझना चाहिए-इच्छा, आस्था और विश्वास ।’ श्री सोलोमन मेरे लिए बहुत ही श्रद्धेय बन गए थे । उन्होंने ही मुझे सिखाया कि मैं जो कुछ भी चाहता हँू, पहले उसके लिए मुझे तीव्र कामना करनी होगी फिर निश्चित रूप से मैं उसे पा सकूँगा । मैं खुद अपनी जिंदगी का ही उदाहरण लेता हँू । बचपन से ही मैं आकाश एवं पक्षियों के उड़ने के रहस्यों के प्रति काफी आकर्षित था । सारस को समुद्र के ऊपर अक्सर मँड़राते देखता था । अन्य दूसरे पक्षियों को ऊँची उड़ानें भरते देखा करता था । हालॉंकि मैं एक बहुत ही साधारण स्थान का लड़का था लेकिन मैंने निश्चय किया कि एक दिन मैं भी आकाश में ऐसी उड़ानें भरूँगा । वास्तव में कालांतर में उड़ान भरने वाला मैं रामेश्वरम का पहला बालक निकला।

अयादुरै सोलोमन सचमुच एक महान शिक्षक थे क्योंकि वे सभी विद्यार्थियों को उनके भीतर छिपी शक्ति एवं योग्यता का अाभास कराते थे । सोलोमन ने मेरे स्वाभिमान को जगाकर एक ऊँचाई दी थी, अौर मुझे एक ऐसे माता-पिता के बेटे जिन्हें शिक्षा का अवसर नहीं मिल पाया था, यह आश्वस्त कराया कि मैं भी अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर सकता हूँ । वे कहा करते थे-‘निष्ठा एवं विश्वास से तुम अपनी नियति बदल सकते हो ।’

 बात उस समय की है जब मैं चौथी ‘फार्म’ मंे था । सारी कक्षाऍं स्कूल के अहाते में अलग-अलग झुंडों के रूप में लगा करती थीं । मेरे गणित के शिक्षक रामकृष्ण अय्यर एक दूसरी कक्षा को पढ़ा रहे थे । अनजाने में ही मैं उस कक्षा से होकर निकल गया । तुरंत ही एक प्राचीन परंपरावाले तानाशाह गुरु की तरह रामकृष्ण अय्यर ने मुझे गरदन से पकड़ा और भरी कक्षा के सामने बंेत लगाए । कई महीनों बाद जब गणित में मेरे पूरे नंबर आए तब रामकृष्ण अय्यर ने स्कूल की सुबह की प्रार्थना में सबके सामने यह घटना सुनाई-‘मैं जिसकी बेंत स

पिटाई करता हँू वह एक महान व्यक्ति बनता है । मेरे शब्द याद रखिए, यह छात्र विद्यालय और अपने शिक्षकों का गौरव बनने जा रहा है ।’ उनके द्‌वारा की गई यह प्रशंसा क्या एक भविष्यवाणी थी ?

श्वाट्‌र्ज हाइस्कूल से शिक्षा पूरी करने के बाद मैं सफलता हासिल करने के प्रति आत्मविश्वास से सराबोर छात्र था । मैंने एक क्षण भी सोचे बिना और आगे पढ़ाई करने का फैसला कर लिया । उन दिनों हमें व्यावसायिक शिक्षा की संभावनाओं के बारे में कोई जानकारी तो थी नहीं । उच्च शिक्षा का सीधा-सा अर्थ कॉलेज जाना समझा जाता था । सबसे नजदीक कॉलेज तिरुचिरापल्ली में था । उन दिनों इसे ‘तिरिचनोपोली’ कहा जाता था और संक्षेप में ‘त्रिची’ ।

 जब कभी भी मैं त्रिची से रामेश्वरम लौटता तो मेरे बड़े भाई मुस्तफा कलाम, जो रेलवे स्टेशन रोड पर परचून की एक दुकान चलाते थे, मुझसे थोड़ी-बहुत मदद करवा लेते थे और कुछ-कुछ घंटों के लिए दुकान को मेरे जिम्मे छोड़ जाते थे । मैं तेल, प्याज, चावलऔर दूसरा हर सामान बेच लेता था । मैंने पाया कि सिगरेट और बीड़ी सबसे ज्यादा बिकने वाली वस्तुऍं थीं। मुझे ताज्जुब हुआ करता कि गरीब लोग अपनी कड़ी मेहनत की कमाई काे किस तरह धुएँ में उड़ा देते हैं । जब मैं मुस्तफा के यहॉं से खाली हो जाता तो अपने छोटे भाई कासिम मुहम्मद की दुकान पर चला जाता । वहॉं मैं शंखों एवं सीपियों से बने अनूठे सामान बेचा करता था। भाइयों की सहायता करना मुझे अच्छा लगता था ।