१.5 (अ) असली गवाह

बहुत पहले की बात है । एक दिन राजा कृष्णदेव राय दरबार में बैठे दरबारियों से किसी गंभीर विषय पर बातचीत कर रहे थे। तभी बाहर से किसी की आवाज सुनाई दी- ‘‘दुहाई हाे महाराज ! दुहाई ! मुझे न्याय दें । मेरा न्याय करें ।’’ तीन लोग आपस में लड़ते- झगड़ते दरबार में पहँुचे । उनमें शहर का प्रसिद्ध हलवाई बालचंद्रन था और बाकी दो अजनबी थे ।

 बालचंद्रन महाराज के पैरों पर गिरकर बोला, ‘‘महाराज ! मुझे इन दो ठगों से बचाएँ । ये सिक्कों की मेरी थैली लूटना चाहते हैं । इन्होंने मुझे निर्दयता से पीटा भी है ।’’ उन दोनों ने अपना बचाव करते हुए कहा ‘‘महाराज ! ये हमारा धन हमें वापस नहीं कर रहा है । यह हमारी थैली है । इसने ये सिक्के हमसे लूटे हैं ।’’

 बालचंद्रन से पूछा गया तो वह हाथ जोड़कर बोला, ‘‘महाराज ! दुकान बंद करते समय मैंने सारे सिक्केगिनकर थैली में रखें और चलने ही वाला था कि ये आ पहुँचे और मेरी थैली छीनने की कोशिश की ।’’ ‘‘नहीं, ये झूठ बोल रहा है, थैली हमारी है । आप पैसे गिन लें । इसमें पूरे पाँच सौ सिक्‍के हैं’’ अजनबियों ने कहा । महाराज यह तय नहीं कर पा रहे थे कि धन का असली मालिक कौन है ? गंभीर सोच-विचार के बाद उन्होंने तेनालीराम से कहा, ‘‘समस्या का पता लगाओ, असली अपराधी काे सजा मिलनी चाहिए ।’’

 तेनालीराम उन तीनों को कोने में ले गए और फिर से पूछताछ प्रारंभ की । उन्हें यही लगा कि बालचंद्रन नामी हलवाई है, वह ऐसी हरकत नहीं कर सकता पर उसकी बेगुनाही साबित भी तो करनी चाहिए थी । कोई गवाह भी मौजूद नहीं था । तभी उनके दिमाग की बत्ती जल उठी । उन्हें एक तरकीब सूझी । उन्होंने सिपाही को अादेश दिया- ‘‘एक बड़े बरतन में उबलता पानी लाओ ।’’

दरबार में सभी के चेहरों पर परेशानी थी । वे हैरान थे कि भला उबलते पानी का यहॉं क्या काम था ? उबलते पानी का बरतन एक चौकी पर रखा गया । तेनालीराम ने सारे सिक्के गर्म पानी में डाल दिए । कुछ ही देर में पानी पर घी तैरने लगा । हर कोई तेनालीराम के चेहरे पर मुसकान देख सकता था । तेनालीराम ने समझाया, ‘‘महाराज, दूध का दूध, पानी का पानी हो गया । हमें इस कहानी की सच्चाई और गवाह दोनों का पता चल गया है । असली अपराधी पकड़े गए हैं । सिक्कों से भरी थैली इन अजनबियों की नहीं, बालचंद्रन की है ।’’ ‘‘तुम कैसे कह सकते हो ? क्या सबूत है?’’ महाराज ने पूछा । ‘‘महाराज ! मिठाइयॉं बेचते समय अक्सर बालचंद्रन के हाथों पर घी लग जाता है । अब वही घी, गवाही देने के लिए पानी के ऊपर तैर आया है ।’’ दोनों अजनबियों के चेहरे पीले पड़ गए । उन्होंने भागना चाहा पर सिपाहियों ने पकड़ा और जेल में डाल दिया । बालचंद्रन तेनालीराम को धन्यवाद दे खुशी-खुशी लौट गया । उसे सिक्कों की थैली वापिस िमल गई थी।

महाराज ने भी तेनालीराम की चतुराई की प्रशंसा की और यथोचित पुरस्कार भी दिए ।