१.5 (ब) जीवन

सबको गले लगाते चलना,
स्नेह नगर से जब भी गुजरना ।

अनगिन बँूदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना ।

बरसों याद रखें ये लहरें
सागर से यँू पार उतरना ।

फूलों का अंदाज सिमटना,
खुशबू का अंदाज बिखरना ।।

गिरना भी है बहना भी है
जीवन भी है कैसा झरना

अपनी मंजिल ध्यान में रखकर
दुनिया की राहों से गुजरना ।

पर्वत,मिट्टी, पेड़ ज्यों रहते
जग में सबसे हिलमिल रहना