२. बाली यह धान की

खेतों में झूम रही ,
बाली यह धान की ।
झमक-झमक चलती,
ज्यों बेटी किसान की ।।

बूँदों ने प्यार दिया,
बरखा ने पाला है ।
चंदा ने रूप दिया,
सूरज रखवाला है ।।

छाया है मंडप-सी,
नीले वितान की ।
खेतों में झूम रही,
बाली यह धान की ।

पेड़ों पर पंछी हैं,
मेड़ों पर शोर है ।
वंशी की तान लिए,
आती हर भोर है ।।

सखियों-सी गाती हैं,
किरणें विहान की ।
खेतों में झूम रही,
बाली यह धान की ।।

श्रम का यह मोती है,
मेहनत की जीत है ।
फसलों के आँचल से,
झरता यह गीत है ।।

मेहनत ही पूँजी है,
जग में इन्सान की ।
खेतों में झूम रही,
बाली यह धान की ।।