२. लालची कुत्ता

एक कुत्ता जो बहुत लालची,
भाग चला लेकर रोटी,

पड़ी रास्ते में उसके इक,
नदी बहुत जो थी छोटी

जाने को उस पार नदी के, रखा था पतला पटरा,

संभल-संभलकर चलना पड़ता,
वरना था पूरा खतरा

पानी में देखा इक कुत्ता,
उसके जैसा था जो दीखता,

उसके जैसी मुँह में रोटी,
दीख रही थी मोटी-मोटी

कैसे रोटी उसकी पाऊँ,
उसका हिस्सा भी हथियाऊँ ?

भौका सोच बेभानी में,
रोटी जा गिरी पानी में

भौचक्का-सा लगा देखने;
खड़ा रहा मुँहवाय,

बच्चो इसको कभी न भूलो;
लालच बुरी बलाय

– प्रभाकर भट्ट