एक कुत्ता जो बहुत लालची,
भाग चला लेकर रोटी,
पड़ी रास्ते में उसके इक,
नदी बहुत जो थी छोटी
जाने को उस पार नदी के, रखा था पतला पटरा,
संभल-संभलकर चलना पड़ता,
वरना था पूरा खतरा
पानी में देखा इक कुत्ता,
उसके जैसा था जो दीखता,
उसके जैसी मुँह में रोटी,
दीख रही थी मोटी-मोटी
कैसे रोटी उसकी पाऊँ,
उसका हिस्सा भी हथियाऊँ ?
भौका सोच बेभानी में,
रोटी जा गिरी पानी में
भौचक्का-सा लगा देखने;
खड़ा रहा मुँहवाय,
बच्चो इसको कभी न भूलो;
लालच बुरी बलाय
– प्रभाकर भट्ट