२.विश्वव्यापक प्रेम

सुनो तो जरा

हर देश मंे तू हर भेष में तू, तेरे नाम अनेक तू एक ही है ।
तेरी रंगभूमि यह विश्व भरा, सब खेल में, मेल में तू ही तू है ।।१।।

सागर से उठा बादल बन के, बादल से फटा जल हो करके ।
फिर नहर बनी नदियॉं गहरी, तेरे भिन्न प्रकार तू एक ही है ।।२।।

चींटी से भी अणु-परमाणु बना, सब जीव जगत का रूप लिया ।
कहीं पर्वत, वृक्ष विशाल बना, सौंदर्य तेरा तू एक ही है ।।३।।

यह दिव्य दिखाया है जिसने, वह है गुरुदेव की पूर्ण दया ।
तुकड्या कहे कोई न और दिखा, बस मैं और तू सब एक ही है ।।4।।