२. हवा

झूम-झूमकर नाच-नाचकर,
कलियों संग इठलाती है।

हलकी-फुलकी, नटखट, चंचल,
सबके घर घुस जाती है

ठुमक ठुमककर, मटक-मटककर,
नदी लहर संग बल खाती है ।

जंगल, पर्वत, खेत, गाँव में,
गीत नए लिख जाती है।

चिड़ियों के नन्हे बच्चों को,
गोद लिए दुलराती है।

सुबह-सवेरे, तड़के-तड़के,
आकर हमें जगाती है

केदारनाथ ‘कोमल’