झूम-झूमकर नाच-नाचकर,
कलियों संग इठलाती है।
हलकी-फुलकी, नटखट, चंचल,
सबके घर घुस जाती है
ठुमक ठुमककर, मटक-मटककर,
नदी लहर संग बल खाती है ।
जंगल, पर्वत, खेत, गाँव में,
गीत नए लिख जाती है।
चिड़ियों के नन्हे बच्चों को,
गोद लिए दुलराती है।
सुबह-सवेरे, तड़के-तड़के,
आकर हमें जगाती है
केदारनाथ ‘कोमल’