किसी तालाब में एक कछुअा रहता था । तालाब के बिलकुल किनारे पर जामुन का एक पेड़ था । समय आने पर उसपर मीठे जामुनों के गुच्छे लगते । पास के गॉंव से लड़के उस पेड़ के जामुन खाने के लिए आते ।
कुछ ही दिनों के बाद जामुन के उस पेड़ पर एक कौआ और उसकी पत्नी आकर रहने लगे । कौआ अक्सर दूसरों को परेशान करता रहता या लड़ता- झगड़ता रहता । जब कछुआ तालाब से निकलकर जमीन पर आता तो कौआ उसकी पीठ पर सवार हो जाता और उछल-कूद करता । कई बार तो कौआ अपनी ताकत का दिखावा करता हुआ उसे उलट[1]पलट भी देता। उससे दुखी था कछुआ । इसके विपरी कौए की पत्नी नम्र स्वभाव की थी । पति-पत्नी के स्वभाव की असमानता से कछुआ भलीभांॅति परिचित था । कछुए से दुर्व्यवहार करने के लिए पत्नीउसे अक्सर मना करती।
एक दिन जब कछुआ तालाब से निकलकर जमीन पर धीरे-धीरे चलने लगा तो कौए की नजर उसपर जा पड़ी और वह झट से उसपर चढ़ गया । कछुए को गुस्सा आ गया । वह बोला, ‘‘क्यों भाई कौए, मेरी पीठ पर चढ़कर मुझे तंग क्यों करते रहते हो, आखिर तुम मुझसे चाहते क्या हो?’’ ‘‘तेरे ऊपर मजे से सवारी करना चाहता हूँ । ऐसा करने से मुझे बड़ा मजा आता है,’’ हँसता हुआ कौआ बोला।
कछुए ने पूछा, ‘‘दूसरों को तंग-परेशान करके खुश होना, कहॉं की भलमनसाहत है? क्या तुम भी मुझे अपनी पीठ पर बिठा सकते हो?’’ कौआ एकदम बोला, ‘‘क्यों, मैं तुझे क्यों बिठाऊँ अपनी पीठ पर?’’ जब कौआ कछुए को और भी ज्यादा परेशान करने लगा तो कछुए ने तालाब से बाहर आना कम कर दिया।
कुछ दिनों के बाद कौए की पत्नीने घोंसले में अंडे दिए । उधर पेड़ पर लगे जामुनों के गुच्छे भी पकने लगे थे । एक दिन गॉंव के लड़के आए और जामुन के पेड़ पर चढ़कर जामुन खाने लगे तो कौआ दंपति ने ‘कॉंव-कॉंव, कॉंव-कॉंव’ करके आसमान सिर पर उठा लिया। एक लड़का जब कौए के घोंसले के पास जाकर एक गुच्छे को तोड़ने का प्रयत्न करने लगा तो हिलने-डुलने के कारण घोंसले में से एक अंडा निकलकर सीधा तालाब में जा गिरा ।
कौआ दंपति अपना एक अंडा तालाब में गिर जाने के कारण बहुत दुखी हो गया । वे तालाब के किनारे बैठकर फूट-फूट कर रोने लगे । पानी में बैठे कछुए ने गिरते हुए अंडे को देख लिया था । कुछ ही पल बाद वही कछुआ अपने मुँह में उनका अंडा लिए बाहर आया और घास पर रखता हुआ बोला, ‘‘शुक्र है कि तुम्हारा अंडा पानी में ही गिरा । यदि थोड़ा दूसरी तरफ गिर जाता तो टूट जाता । मैंने पानी में से ही इसे गिरते हुए देखकर मुँह में पकड़ लिया । उसके अंदर की जान बच गई है । अब चिंता की बात नहीं । यह सुरक्षित है । सँभालिए ।’’
कछुए की यह बात सुनकर कौआ अपनी करनी पर बहुत दुखी हुआ । उसे अपनी एक-एक करतूत याद आ रही थी पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुगगई खेत । कछुए को धन्यवाद देने के लिए उन दोनों पति-पत्नी के पास शब्द नहीं थे ।
कौए ने कहा, ‘‘आज मेरी आँखें खुल गईं । मैं अपने किए पर लज्जित हूँ । मैं भविष्य में किसी को कष्ट नहीं दूँगा ।’’ कछुए ने कहा, ‘‘ जब जागो तभी सवेरा’’। अब सब हिल-मिलकर रहेंगे ।