देशी कंपनी ने रेफ्रीजरेटर बनाया और उसकी प्रसिद्धि के लिए विदेशी विज्ञापन अपनाया । भारत भर में प्रतियोगिता का जुगाड़ किया । सवाल था- ‘इस रेफ्रीजरेटर को खरीदने के क्या सात लाभ हैं ?’ एक अप्रैल को फल निकलना था । जिस या जिन प्रतियोगियों का उत्तर कंपनी के मुहरबंद उत्तर से मेल खा जाएगा, उसे या उन्हें एक रेफ्रीजरेटर मुफ्त इनाम दिया जाएगा ।
भारत में धूम मच गई है । मेरे विचार से इतने उत्तर अवश्य पहुँचे कि उनकी रद्दी बेचकर एक रेफ्रीजरेटर के दाम तो वसूल हो गए होंगे ।
लाॅटरी खुलने वाले दिन से पहली वाली रात थी । हम सब बाहर छत पर लेटे थे । हेमंत ने कहा, ‘‘पिता जी, हम रेफ्रीजरेटर रखेंगे कहॉं ?’’
पत्नी ने उत्तर दिया, ‘‘क्यों, रसोई में जगह कर लेंगे । क्यों जी, तुमने बिजली कंपनी में दरख्वास्त भी दे दी है ? घरेलू पावर चाहिए उसके लिए।’’ मैं मुस्कराकर बोला, ‘‘तुम तो खयाली पुलाव पका रहे हो । मानो किसी ने तुम्हें टेलीफोन पर खबर कर दी हो ।’’
‘‘हमारे टेलीफोन तो तुम ही हो ।’’ पत्नी ने मस्का लगाया । ‘‘इतने अच्छे लेखक के होते हुए कौन जीत सकेगा ?’’
‘‘पर यह क्या पता, मैंने कंपनी के उत्तरों से मिलते उत्तर लिखे हों ।’’ ‘‘अच्छा जी, अब हमसे उड़ने लगे । उस दिन खुद कह रहे थे कि कंपनी के पास लिखा लिखाया कुछ नहीं है, यह तो जिसका उत्तर सबसे अच्छा होगा उसे इनाम दे देगी । रेफ्रीजरेटर का विज्ञापन हाे जाएगा और लाभ छॉंटने के लिए किसी एक्सपर्ट को रखना पड़ता अौर उसके पैसे अलग बचेंगे ।’’
‘‘वह तो समय-समय पर दिमागी लहरें दौड़ती हैं ।’’ अमिता ताली पीटकर बोली, ‘‘पिता जी, मैं रोज आइसक्रीम खाया करूँगी ।’’ हेमंत ने कहा, ‘‘मैं बर्फ के क्यूब चूसूँगा ।’’
तभी बगल की छत से आवाज आई, ‘‘यह आइसक्रीम रोज-रोज कौन बना रहा है ? क्या अमिता के पिता जी रेस्ट्रॉं खोल रहे हैं ?’’ हेमंत चिल्लाया, ‘‘नहीं ताऊ जी, कल हमारा रेफ्रीजरेटर आ रहा है ।’’ अमिता भी खिलखिलाई, ‘‘उसमें रोजाना आइसक्रीम जमाया ताऊ जी ने कहा, ‘‘क्या लाॅटरी वाले की बाबत कह रहे हो ? वह तो मेरे नाम आ रहा है ।’’
मैंने नम्र स्वर से पड़ौसी दीनदयाल को पुकारा, ‘‘क्या आपने भी उत्तर भर कर भेजा है ?’’
‘‘हॉं ! क्योंकि मेरा उत्तर तुमसे सही है इसलिए रेफ्रीजरेटर मिलेगा तो मुझे ! खैर बच्चो ! आइसक्रीम तो तुम्हें खिलानी ही पड़ेगी ।’’
बच्चे मायूस हो गए । किस्मत की बात है, अगले दिन लाॅटरी खुली और रेडियो पर पता चला कि जिसके सब उत्तर ठीक है, उन दो भाग्यवानों में से एक मैं हूँ ।
रेफ्रीजरेटर मुंबई से आते-जाते काफी दिन लग गए । इतने में मैंने बिजली का प्रबंध कर लिया । उसका अाना था कि सगे और संबंधियों में, मित्रों और मोहल्लेमें धूम मच गई । सब देखने आने लगे जैसे कोई बहू को देखने आताहै । मुझे शक है यदि मैं अपने कमाए पैसों से खरीदता तो भी ऐसी भीड़ लगती क्या ? यह सब लाॅटरी का प्रताप था ।
पहले आने वालों को पत्नी ने शिकंजी बनाकर पिलाई, कुछ शौकीनाें के लिए चाय बनी । भीड़ बढ़ती गई तो घबराकर उसने हथियार टेक दिए । झॉंकी देखने वालांे का तॉंता बँधा था । एक जाता था, दो आते थे । बच्चों ने पहले से बोतलें इकट्ठी करके रखी थीं । आठांे में पानी भर कर रखा हुआ था । परंतु वे पल-पल मंे खाली हो रही थीं, पानी कैसे ठंडा होता । दिनेश ने छींटा छोड़ा, ‘‘अबे, यह तो पानी को गरम बना रहा है।’’ मैं हँस कर बोला, ‘‘भीड़ नहीं देखी, हम खुद गरम हो रहे हैं । पानी रखे मुश्किल से एक मिनट हुआ होगा ।’’
लकीर की फकीर बोलीं,‘‘क्यों बेटा, किस देवी की मानता मानी थी ? हमें भी बता दें ।’’
कुढ़मगज ने सुनाया, ‘‘भई, मैंने भी उत्तर लिख रखे थे किंतु कोई आए और लेकर चलते बने । मैंने फिर दुबारा दिमाग पर जाेर नहीं डाला ।’’ उनके साथी ने पूछा, ‘‘कहीं अरुण तो नहीं उठा लाया ?’’ ‘‘नहीं, नहीं ! पर क्या कहा जा सकताहै ! यह मैं जानता हूँकि वे सब जवाब बिलकुल ठीक थे ।’’ जला भुना बोला, ‘‘जब बिजली का बिल आएगा तब बच्चूको पता लगेगा कि सफेद हाथी बाॅंध लिया है।’’
शक्की ने कहा, ‘‘मुझे पता है, अरुण का रिश्तेदार कंपनी में नौकर है । उसने असली जवाब इसे चुपके से लिख भेजे कि मुफ्त का रेफ्रीजरेटर घर में ही रह जाए।’’
एक तो लगातार लोगों का आना परेशान कर रखा था, दूसरे इस जली-कटी ने कॉंटों में डंक का काम किया । हम दोनों बिलबिला उठे । एक बिगड़ेदिल ने हेमंत को पुचकार कर पूछा, ‘‘क्यों बेटे, तुम्हार जली-कटी ने कॉंटों में डंक का काम किया । हम दोनों बिलबिला उठे ।
एक बिगड़ेदिल ने हेमंत को पुचकारकर पूछा, ‘‘क्यों बेटे, तुम्हारे पिता जी कितने दिन पहले मुंबई गए थे ?’’ उसे निश्चय था कि मैं मुंबई जाकर इस रेफ्रीजरेटर के पैसे दे आया हूँ और अपने नाम के लिए इसे लाॅटरी में जीतने का अनुबंध कर आया हूँ । बच्चे से यह तिरछा सवाल पूछकर उससे कबुलवाना चाहते थे ।
बच्चों को इन झगड़ों से क्या? वे हँस-हँसकर अपना रेफ्रीजरेटर सबको दिखा रहे थे । हेमंत बोतलों से पानी पिला रहा था और अमिता खाली बोतलें भरकर लगा रही थी ।
खैर, राम-राम करके उस दिन के टंटे से तो पीछा छूटा । लेकिन आगे क्या आने वाला था, उसका हमें आभास भी न था ।
शांति बुआ ने शुरुआत की । उनके हाथ में ढँका कटोरा था । आवाज लगाती चली आई, ‘‘ओ बहू, कहॉं है ? जरा इधर तो सुन ।’’
कल के भंभड़ से आज की शांति बड़ी प्यारी लग रही थी इसलिए हम दाेनों का मूड ठीक था । पत्नी ने बड़े स्वागत से उन्हें बिठाया, ‘‘बैठिए बुआ जी बैठिए । अजी, जरा बोतल से पानी भेजना ।’’
बुआ जी बड़ी जल्दबाज हैं । ठंडा पानी पीकर उठ गईं । ‘‘चल रही हूँ बहू । अभी चूल्हा नहीं बुझाया । यह आटा बच गया था, गर्मी में सड़ जाता । मैंने कहा, तेरे रेफ्रीजरेटर में रख आऊँ, शाम को मँगा लूँगी ।’’ पत्नी का दिल बाग-बाग हो गया । शब्दों में मिसरी घोलकर बोली, ‘‘बुआ जी, अाप चिंता न करें । मैं शाम काे हेमंत के हाथ भिजवा दूँगी ।’’ कटोरा ले लिया गया और रेफ्रीजरेटर में रख दिया गया ।
उसी संध्या को लाला दीनदयाल पधारंे । उनके हाथ में मिठाई का बोइया था । गुस्सेके मारे वे पहले दिन नहीं आए थे इसलिए उन्हें देखकर मुझे दुगुनी खुशी हुई । सोफे पर टिकाते हुए बोला, ‘‘कहिए लाला जी, अच्छी तरह से ?’’
‘‘सब भगवान की कृपा है । तुम तो ठीक-ठीक हो ।’’
‘‘आपकी दया है ।’’
‘‘सुना है, तुम्हारा रेफ्रीजरेटर आ गया है ?’’
‘‘हाँ जी, आपकी दुआ से लाॅटरी मंे जीत गया । अाइए देखिएगा ?’’
वे बैठे रहे । देखकर क्या करूँगा ? विदेश की नकल की होगी ।’’ मंै चुप रहा । पत्नी के कानों में बच्चों ने भनक डाल दी कि बगलवा- ले ताऊ जी आए हैं । आम की आइसक्रीम तश्तरियों में लगाकर चली आई।
‘‘लाला जी, लीजिए । सवेरे जमाई थी ।’’
‘‘नहीं बेटी, मुझसे नहीं खाई जाएगी ।’’
मैंने भी जोर दिया, ‘‘लीजिए लाला जी, थोड़ी तो लीजिए ।’’
‘‘मैं आइसक्रीम नहीं खाता, दॉंत चीसने लगते हैं ।’’
बात साफ झूठी थी । किंतु जब भला आदमी इनकार कर रहा था तब हम जबरदस्ती कैसे करते और फिर मैं अकेला खाता क्या अच्छा लगता ? ‘‘विमला, इसे ले जाओ । बॉंट दो, नहीं तो पिघल जाएगी ।’’
मोहल्ले में समाचार उड़ती बीमारी से भी तेज फैलते हैं । हमारे फ्रिज का यह उपयोग पता चलते ही फिर लाइन बॅंध गई । कोई रोटी ला रहा है, कोई पराठे, तरह-तरह के साग, नाना प्रकार की मिठाइयॉं । चमनलाल लखनऊ गए तो टोकरा भर करेले ले आए क्योंकि मेरठ में अभी नहीं मिल रहे थे । बनर्जी कोलकाता से संदेश और खीर महीने भर के लिए ले आए ।
रेफ्रीजरेटर में हमें अपनी चीजों के लिए जगह न के बराबर मिलती थी, इसकी कोई चिंता नहीं । दुख तो इस बात का था कि हमारे घर की प्राइवेसी छिन गई थी । नहाना, खाना भी हराम हो गया था । बड़े परेशान ! करें तो क्या करें ? समझ में नहीं आता था ।
जी करता था किसी को रेफ्रीजरेटर दे दूँ और फिर उसकी मुसीबत देखकर ताली पीट-पीटकर नाचूँ । किंतु उसमें लोगों की अमानत जो पड़ी थी ।
चिंता ने चेतना की चिता सजा दी ।
उस दिन कैलाश आया । मोहल्ले में रहता था, पर मोहल्लेदार से अधिक था । कहने लगा, ‘‘सिंधी आलू मुझे बड़े अच्छे लगते हैं, सो पत्नी से काफी बनवा लिए हैं । अपने फ्रिज में रख लो, जिस दिन खाने को जी करेगा ले जाया करूँगा ।’’
उस दिन रेफ्रीजरेटर में तिल रखने की जगह न थी । मैंने उसे अपनी बेबसी बताई । बिगड़कर बोला, ‘‘अच्छा जी, ऐरे-गैरे नत्थू खैरे तो तुम्हारे बाबा लगते हैं और यार लोगों की चीजें रखने को लाचारी है ।’’
मैंने पत्नी से आँखों-आँखों में पूछा । उसने में सिर हिला दिया । वह भॉंप रहा था । ‘‘अच्छा, मुझे दिखाओ । मैं जगह कर लूँगा ।’’ हम दोनों उसे निराश करते हुए वास्तव में दुखी थे । यह सुझाव खुद न देने की मूर्खता कर गए थे । खुश होकर फ्रिज खोलकर दिखा दिया ।
फ्रिज भरा नहीं कहिए, व्यंजनों से अटा पड़ा था । देखकर तबीयत घबराती थी ।
कैलाश ने ऊपर नीचे झॉंका । दृष्टि भी अंदर घुसने से इनकार कर रही थी । सहसा उसने एक कॉंच का कटोरा निकाला और विमला से पूछा, ‘‘भाभी जी, ये सिल्वर क्रीम किसकी है ?’’
‘‘अपनी है ।’’ ‘‘तो फिर इन्हें रखने का क्या फायदा ? ऐसी चीज तो पेट में पहुँचनी चाहिए ।’’
कहकर उसने दो मुॅंह में रख लीं । बाकी दो बची थीं । हेमंत-अमिता स्कूल गए थे और उसे जगह करनी
थी इसलिए उन्हें हमने उदरस्थ किया ।
दो-तीन दिन मंे फ्रिज खाली हो गया । उसमें केवल हमारी चीजें थीं । शांति बुआ अपना पनीर मटर लेने आईं । ‘‘क्या करें बुआ जी उसमें मच्छर गिर गए थे इसलिए फेंक दिया ।’’
रामानुज ने मिठाई मॉंगी तो माफी माँगने लगा, ‘‘चाचा जी, बड़ा शरमिंदा हूँ । कल तीन-चार मित्र आ गए थे । बाजार जाने का मौका न मिला । आपकी मिठाई से काम चला लिया । फिर मैं आपमें और अपने में कोई भेद नहीं मानता ।’’ ये शब्द उन्हीं के थे जब वे मिठाई रखने आए थे ।
साग लेने चक्रवर्ती आए तो लाचारी दिखाई, ‘‘भाई, तुम्हंे तो पता है कल कैसी धुआँधार बारिश थी । पत्नी बोली-‘‘जब घर में साग रखा है तब भीगने से क्या फायदा । जैसा उन्होंने खाया वैसा हमने ।’’
रमा पराठे को पूछ रही थी, विमला ने उत्तर दिया, ‘‘सवेरे-ही-सवेरे एक साधु आ गए । बड़े पहुँचे हुए साधु थे । खाली हाथ कैसे जाने देती । घर में कुछ तैयार नहीं था । तुम्हारे पराठे दे दिए ।’’
रमा ने शंका उपस्थित की, ‘‘किंतु तुम तो साधु-संतों में विश्वास नहीं करतीं ?’’ विमला ने बात बनाई, ‘‘वह फिर सारे मोहल्लेको तंग करता । मैंने पराठे तुम्हारी ओर से उसे दिए हैं । तुम्हारे घर का पता बता दिया है । झूठ समझो या सच, कल-परसों वह जब तुम्हारे घर आकर आज के पराठे के लिए आशीष देगा और भोजन मांॅगेगा तब तुम्हें मानना पड़ेगा ।’’
मैंने कहा न, मोहल्ले में समाचार उड़ती बीमारी की भॉंति फैलते हैं । अब मेरे घर के पास भी कोई नहीं फटकता ।