रात समय वह मेरे आवे । भोर भये वह घर उठि जावे ।।
यह अचरज है सबसे न्यारा । ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा ।।
वह आवे तब शादी होय । उस दिन दूजा और न कोय ।।
मीठे लागे वाके बोल । ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल ।।
जब माँगू तब जल भरि लावे । मेरे मन की तपन बुझावे ।।
मन का भारी तन का छोटा । ऐ सखि साजन ? ना सखि लोटा ।।
बेर-बेर सोवतहि जगावे । ना जागू तो काटे-खावे ।।
व्याकुल हुई मैं हक्की-बक्की । ऐ सखि साजन ? ना सखि मक्खी ।।
अति सुरंग है रंग रॅंगीलो । है गुणवंत बहुत चटकीलो ।।
राम भजन बिन कभी न सोता । क्यों सखि साजन ? ना सखि तोता ।।
अर्धनिशा वह आयो भौन । सुंदरता बरनै कवि कौन ।।
निरखत ही मन भयो अनंद । क्यों सखि साजन ? ना सखि चंद।।
शोभा सदा बढ़ावन हारा । आँखिन से छिन होत न न्यारा ।।
आठ पहर मेरो मनरंजन । क्यों सखि साजन ? ना सखि अंजन ।।
जीवन सब जग जासों कहै । वा बिनु नेक न धीरज रहै ।।
हरै छिनक में हिय की पीर । क्यों सखि साजन ? ना सखि नीर।।
बिन आए सबहीं सुख भूले । आए ते अँग-अँग सब फूले ।।
सीरा भई लगावत छाती । क्यों सखि साजन ? ना सखि पाती ।।
– अमीर खुसरो