६. ऐ सखि !

रात समय वह मेरे आवे । भोर भये वह घर उठि जावे ।।

 यह अचरज है सबसे न्यारा । ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा ।।

 वह आवे तब शादी होय । उस दिन दूजा और न कोय ।।

 मीठे लागे वाके बोल । ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल ।।

 जब माँगू तब जल भरि लावे । मेरे मन की तपन बुझावे ।।

 मन का भारी तन का छोटा । ऐ सखि साजन ? ना सखि लोटा ।।

 बेर-बेर सोवतहि जगावे । ना जागू तो काटे-खावे ।।

 व्याकुल हुई मैं हक्की-बक्‍की । ऐ सखि साजन ? ना सखि मक्‍खी ।।

 अति सुरंग है रंग रॅंगीलो । है गुणवंत बहुत चटकीलो ।।

 राम भजन बिन कभी न सोता । क्‍यों सखि साजन ? ना सखि तोता ।।

 अर्धनिशा वह आयो भौन । सुंदरता बरनै कवि कौन ।।

 निरखत ही मन भयो अनंद । क्‍यों सखि साजन ? ना सखि चंद।।

 शोभा सदा बढ़ावन हारा । आँखिन से छिन होत न न्यारा ।।

 आठ पहर मेरो मनरंजन । क्‍यों सखि साजन ? ना सखि अंजन ।।

 जीवन सब जग जासों कहै । वा बिनु नेक न धीरज रहै ।।

 हरै छिनक में हिय की पीर । क्‍यों सखि साजन ? ना सखि नीर।।

 बिन आए सबहीं सुख भूले । आए ते अँग-अँग सब फूले ।।

 सीरा भई लगावत छाती । क्‍यों सखि साजन ? ना सखि पाती ।।

– अमीर खुसरो