७ डाॅक्‍टर का अपहरण

कुछ महीनों पहले आपने डाॅक्‍टर भटनागर के अचानक लापता हो जाने का समाचार पढ़ा होगा लेकिन उसके बाद फिर उनके बारे में कुछ भी पता न चला । हुआ यह था कि एक रात को लगभग दो बजे उनके घर की काॅलबेल बज उठी । आदत के अनुसार डाॅक्‍टर भटनागर उठ गए । उनकी पत्‍नी जागकर भी बिस्‍तर पर ही पड़ी रहीं क्‍योंकि वह जानती थी कि ऐसा तो रोज ही होता है । जब भी कोई मरीज सीरियस होता तब अस्‍पताल का चौकीदार उन्हें उठाने आ जाता । अगर किसी को उन्हें घर बुलाकर ले जाना होता तो वह भी आकर उन्हंे जगा देता । डाॅक्‍टर भटनागर मरीजों की सेवा करना अपना परम कर्तव्य समझते थे इसलिए वह इसका बुरा न मानते, बल्‍कि सहर्षचले जाते । कोई उन्हें फीस दे या न दे-इसकी उन्हें कभी चिंता न थी । उस रात भी वह उठे और गाउन पहने ही दवाइयों का बैग उठाकर चले गए । आम तौर से होता यह था कि वह एक-दो घंटे में लौट आते थे या फिर सवेरा होते-होते तो अवश्य ही आ जाते थे क्‍योंकि उन्हें अस्‍पताल समय से पहुँचने की आदत थी ।

किंतु उस दिन जब देर सुबह तक डाॅक्‍टर भटनागर नहीं लौटे तब उनकी पत्‍नी चिंतित हुईं । पहले सोचा कि शायद मरीज की हालत गंभीर होगी इसलिए देर लग गई होगी । फिर यह भी सोचा कि हो सकता है आज सीधे अस्‍पताल चले जाएँ । लेकिन जब मरीज उन्हें घर पर पूछने के लिए आने लगे तब उनकी हैरानी बढ़ गई । उन्होंने मित्रों तथा कुछ अन्य संबंधियों को फोन किया और डाॅक्‍टर साहब के बारे में पूछताछ की किंतु कोई जानकारी न मिली । कुछ देर के लिए वह यही मान बैठी कि शायद वे किसी दूर के गाँव में गए हों और किसी कारण से जल्‍दी वापस न आ पाए हों ।

 शाम तक भी जब डाॅक्‍टर भटनागर नहीं लौटे तब उन्होंने पुलिस स्‍टेशन को फोन किया । डाॅक्‍टर भटनागर का इस तरह गायब हो जाना पुलिस के लिए भी हैरानी का कारण बन गया । चारों ओर खोज शुरू हो गई । वाय[1]रलेस से संदेश भेज दिए गए । डाॅक्‍टर भटनागर के गायब होने का समाचार बिजली की तरह शहर भर में फैल गया । उनकी पत्‍नी खोज के लिए केवल इतना ही सूत्र दे सकीं कि डाॅक्‍टर साहब अपनी कार में नहीं गए । उन्हें लेने कोई गाड़ी आई थी । जिसके बड़े पहियों के निशान उन्होंने सवेरे घर के बाहर सड़क और फुटपाथ पर देखे थे । जाहिर था कि डाॅक्‍टर साहब किसी ट्रक या बस में गए हैं । मुहल्‍लेवालों से पूछताछ करने पर भी कोई जानकारी न मिली । फिर‍ भी पुलिस ने वायरलेस से यह सूचना भी जारी कर दी कि कहीं किसी एक्‍सीडेंट के बारे जानकारी मिले तो सूचना तुरंत दी जाए ।

कई दिन बीत गए । कोई सूचना नहीं मिली । चूँकि डाॅक्‍टर भटनागर का कोई शत्रु भी न था इसलिए यह शंका करना व्यर्थथा कि उनकी हत्‍या कर दी गई होगी । पुलिस अब केवल दो ही सूत्रों पर विचार कर रही थी । एक यह कि कुछ गुंडों ने उन्हें छिपा लिया हो और सब उनकी पत्‍नी से मोटी रकम की माँग करें । दूसरा यह कि कोई डाकू दल उन्हें किसी डाकू का इलाज कराने के लिए ले गया हो ।

दिन पर दिन बीतते गए और डाॅक्‍टर भटनागर के बारे में कोई जानकारी न मिली । उनके इस तरह रहस्‍यात्‍मक ढंग से गायब हो जाने से न सिर्फ पुलिस परेशान थी बल्‍कि लोग भी भयभीत हो गए थे । यही कारण था कि डॉ. भटनागर के गायब होने का समाचार केवल एक ही बार छापा गया और बाद में भय का वातावरण बन जाने के डर से उसे दबा दिया गया ।

धीरे-धीरे कई महीने बीत गए । श्रीमती भटनागर निराश हो चुकी थीं । उनकी हालत पागलों जैसी हो गई थी । हर रोज सुबह उठतीं और दरवाजे पर आकर खड़ी हो जातीं, जैसे वह डाॅक्‍टर भटनागर के आने की प्रतीक्षा कर रही हांे ।

कई महीनों बाद एक दिन श्रीमती भटनागर ने दरवाजे पर फिर से वैसी ही गाड़ी के पहियों के निशान देखे । उन्हें लगा कि शायद डाॅक्‍टर साहब आए थे । लेकिन कहाँ हैं ? उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी । खोज जारी हो गई। पुलिस का एक दल उनके घर पर भी आया । उसने गाड़ी के निशान देखे लेकिन उन निशानों को देखकर कुछ भी अंदाज लगाना कठिन था । हाँ, एक सी.डी अवश्य मिली, जो लिफाफे में बंद थी और उस पर श्रीमती भटनागर का नाम लिखा था । उस सी.डी. को तुरंत सुनने की व्यवस्‍था की गई । सी.डी. बजते ही सभी लोग हतप्रभ रह गए । उसमें डाॅक्‍टर भटनागर बोल रहे थे ः

‘तुम सब लोग मेरे लिए परेशान होंगे । शायद अब मरा हुआ समझ लिया हो । लेकिन मैं जिंदा हूंॅ और बिलकुल ठीक हूँ । तुम लोगों से कई करोड़ मील दूर मैं एक अन्य सौरमंडल के ग्रह पर हूँ । हम धरतीवाले सोचते हैं कि शायद दुनिया में जो कुछ है, वह हम ही हैं लेकिन इस ब्रह्मांड में तो हमारे सूर्य जैसे न जाने कितने सूर्य हैं और सभी के अपने-अपने ग्रह हैं । उन ग्रहों पर दुनिया बसी है और हमसे वे लोग कई गुना ज्‍यादा उन्नतिशील हैं । मुझे यहाँ आकर अपने परिवार, मित्रों, देश और पृथ्‍वी से दूर का दुख तो बहुत ही ज्‍यादा है, लेकिन इस बात की खुशी है कि मेरा यह भ्रम जाता रहा कि दुनिया में सिर्फ हम ही हैं । मुझे उम्‍मीद है कि पृथ्‍वी के लोग मेरी इस बात से कुछ सबक लेंगे ।

हाँ, तो पहले सुनो वह कहानी कि मैं कैसे आया । अमरीका में हुए मेरे सम्‍मान और मेरे ज्ञान के बारे में इस ग्रह के लोगों ने गुप्त रीति से सूचनाएँ इकट्ठा की थीं । ये तभी से मेरा अपहरण करने की योजना बना रहे थे । उस रात को जब मैं बाहर आया तब एक आदमी ने मुझे बाहर खड़ी सवारी पर चलने का इशारा किया । मैं अपने सहज भाव से आगे बढ़ा लेकिन उस विचित्र यान को देखकर चौंक पड़ा । इसके पहले कि मैं कोई विरोध करता या भागने की कोशिश करता, तीन लोगों की मजबूत बाँहों ने मुझे जकड़कर यान के अंदर डाल दिया । यान तेजी से घूमकर सूँ-सूँ की आवाज करता हुआ आसमान में उड़ गया । घबराहट के कारण मैं बेहोश हो गया था और जब मुझे होश आया तो वह यान इस ग्रह पर पहुँच चुका था । मुझे एक विशेष किस्‍म का प्लास्‍टिक सूट पहनाया गया ताकि मैं ग्रह के वातावरण के अनुकुल रह सकूँ । अब चूँकि मुझे यहाँ आए हुए काफी समय हो गया है, मैं यहाँ से भागने की कोशिश भी नहीं कर सकता इसलिए मुझे आप सब लोगों के लिए यह संदेश रिकार्ड करके भेजने की अनुमति दी गई है ।

* इस ग्रह का नाम बड़ा विचित्र-सा है । यहाँ के लोग विज्ञान में बहुत आगे बढ़ गए हैं । इनके पास ऐसे यान हैं कि ये एक सौरमंडल से दूसरे तक आसानी से आते-जाते हैं । यहाँ भी लोगों ने रहने के लिए घर बना रखे हैं, कारखाने हैं, बाजार हैं, बस्‍तियाँ है, मोटरें हैं- स‍भी कुछ है लेकिन हमसे बिलकुल भिन्न । इनके अपने वैज्ञानिक सिद्धांत हैं । इन्हें कई सौरमंडलों और उनके ग्रहों के बारे में जानकारी है । हमारा सौरमंडल इनके सबसे निकट है इसीलिए इन्होंने आसानी से मेरा अपहरण कर लिया । *

मेरे अपहरण का कारण जानने से पहले यह जान लें कि ये लोग चिकित्‍साशास्‍त्र में बहुत पिछड़े हुए हैं । यह एक ऐसा ग्रह है जहाँ विज्ञान अपनी चरमसीमा को पहुँच चुका है । यहाँ के आदमी अब आदमी नहीं मशीन हो गए हैं । यहाँ का सारा काम मशीनों से ही होता है और इसका नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे आदमी का महत्‍त्‍व कम होता गया । अब इस पूरे ग्रह में मशीनें ज्‍यादा और आदमी कम हैं । जो लोग हैं, वे मशीनों के गुलाम हैं । दूसरी ओर यहाँ के लोगों को एक विचित्र तरह का सड़न रोग होने लगा है । शरीर का कोई अंग अचानक सड़ना शुरू हो जाता है और फिर वह आदमी मर जाता है । इस रोग का इलाज इन्हें अब तक नहीं मालूम हो सका है । लेकिन इस रोग का कारण वे मशीनें ही हैं जो इन्हें नाकारा बनाए हुए हैं । यहाँ के वैज्ञानिकों ने मेरे बारे में सुना । इन्होंने सोचा कि क्‍यों न मुझे यहाँ बुलाया जाए । तब कोई ऐसी तरकीब साेची जाए कि सड़ा हुआ अंग काटकर उसके स्थान पर दूसरा अंग लगा दिया जाए । बस इसी कारण मेरा अपहरण हुआ है । आज मैं यहाँ बैठकर सोच रहा हूँकि हमारी पृथ्‍वी पर भी विज्ञान तेजी से उन्नति कर रहा है । उद्‌योगों के विकास से मशीनों की संख्या बढ़ रही है । मशीनों अौर कारखानों से वातावरण दूषित हो रहा है । वह सब अगर जारी रहा और ज्यादा मात्रा में हुआ तो पृथ्‍वी पर भी ऐसे ही दिन आने में देर नहीं लगेगी । आज भी पृथ्‍वीपर कैंसर, दिल की बीमारियाँ, तनाव के कारण हाेने वाली बीमारियाँ,ब्लड शुगर आदि उस भविष्‍य का संकेत हैं । इस ग्रह के लोग इन सभी मुसीबतों से गुजर चुके हैं लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिए । अब स्‍थिति यह है कि अगर तुरंत कोई उपाय न किया गया तो शायद यहाँ से इंसानों का नामो-निशान मिट जाएगा । बस यहाँ होंगी ऊँची इमारतें, बड़े-बड़े कारखाने चिमनियाँ और दैत्‍याकार मशीनें ।

आप सोच रहे होंगे कि जो देश विज्ञान में इतना आगे बढ़ चुका है वह चिकित्‍साशास्‍त्र में इतना पीछे कैसे रह गया । इसका कारण यह रहा है कि यहाँ के निवासियों का शरीर बहुत मजबूत होताहै । उसकी ऊपरी चमड़ी मोटे प्लास्‍टिक जैसे पदार्थ की बनी होती है । इस पर हवा, पानी या मिटटी क ् ा कोई असर नहीं होता । हाँ, जब ये बच्चेरहते हैं तब अवश्य यह चमड़ी नरम रहती है लेकिन बाद में धीरे-धीरे वह सख्त हो जाती है । यह सब यहाँ की जलवायु का प्रभाव है । यहाँ लोग बीमार ही नहीं पड़ते इसलिए उन्हें चिकित्‍सा की जरूरत ही नहीं पड़ती और जब किसी चीज की जरूरत न हो तो भला उसके बारे में कोई कैसे सोच सकताहै । इसी कारण ये लोग चिकित्‍साशास्‍त्र में पीछे रह गए । कितं ु अब इन पर मुसीबत आ गई है ।

मैंने सड़न रोग का अध्ययन कर लिया है और इनके शरीर की बनावट का भी । किंतु समस्या यह है कि पृथ्‍वी के चिकित्‍सा सिद्धांतों को यहाँ लागू नहीं किया जा सकता । फिर भी कोशिश कर रहा हँू । इस घातक रोग के इलाज के लिए दवाएँ बनाना है । अंग प्रत्यारोपण के लिए दवाएँ तथा आवश्यक साज सामान बनवाना है । ये काम अकेले मेरे लिए कर पाना संभव नहीं है । मेरा छुटकारा भी यहाँ से तभी होगा जब मैं इन्हें इस मुसीबत से बचने का रास्ता बता सकूँ । इसलिए अब ये लोग योजना बना रहे हैं कि मेरी सहायता के लिए पृथ्‍वी से कुछ और वैज्ञानिकों और डाॅक्‍टरों को लाया जाए । मैं उनकी बात से सहमत नहीं हूँ। मैं तो चाहता हूँकि ये लोग स्‍वयं ही सारी बातें सीख लें और अपना इलाज अपने आप करें किंतु उसके लिए ये अभी तैयार नहीं हैं । यही कारण है कि अब यह बात गुप्त रखी जा रही है कि पृथ्‍वी से कब और कितने डाॅक्‍टरों और वैज्ञानिकों का अपहरण करके उन्हें यहाँ लाया जाएगा ।

 जो भी हो, अब अगर मैं सही सलामत वापस पृथ्‍वी पर आना चाहूँतो इनकी इच्छा के अनुसार ही आ सकता हूँ। इसलिए इनसे विरोध मोल लेना ठीक न होगा । फिलहाल यह कहना कठिन है कि मैं कब आ सकूँगा । आप लोग घबराएँ नहीं, मुझे यहाँ कोई कष्‍टनहीं है । बस मेरे आने तक आप यही समझें कि मैं इस समय विदेश यात्रा पर हूँ ।

डाॅक्‍टर भटनागर के इस रिकार्डकिए संदेश को सुनकर सभी चकित थे । कितना बड़ा रहस्‍योद्घाटन भी हुआ था – आज के लिए और भविष्‍य के लिए भी ।