सूत्रधार ः सुनो, सज्जनो, सुनो ! एक सम्मेलन होगा । यह सम्मेलन है शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों का । हाथ, पैर, मुँह, नाक, कान का, सम्मेलन बेढंगों का । (शरीर के विभिन्न अंग आते हैं । सूत्रधार फिर कहता है ।) तो अब सम्मेलन जुटा, आए हैं सब अंग । पेट, कान के साथ है, पैर, आँख है संग । (दर्शकों से) दर्शक भाइयो, अब आप शांतिपूर्वक शरीर के अंगांे का सम्मेलन देखिए। (वह जाता है ।)
पैर ः हममें से किसी एक को सम्मेलन का अध्यक्ष बनाना चाहिए।
हाथ ः अध्यक्ष कोई नहीं होगा । कौन है बड़ा जो अध्यक्ष बने ?
कान ः बिना अध्यक्ष के ही सम्मेलन शुरू कीजिए।
पेट ः पर यह सम्मेलन हो क्यों रहा है ?
नाक ः (सभी हँसते हैं ।) अरे, सबको पता है सम्मेलन में हम सब अपने कामों का बखान करेंगे। जिसका काम सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण होगा, वही बड़ा माना जाएगा।
पैर ः सबसे पहले हाथ महाशय अपना काम बताएँ ।
हाथ ः भाइयो, बात यह है कि मनुष्य के शरीर का मैं सबसे श्रेष्ठ अंग हूँ । अपनी बात कहना अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना है । (नाचते हुए) यह सुंदर-सी सारी दुनिया किसने कहो बनाई ? बाग, बगीचे, खेत, द्वार पर जो दे रहा दिखाई ।
पैर ः सभी जगह आदमी पहुँचता पैरों के ही बल पर । देखे गाँव, शहर देखे हैं पैरों से ही चलकर। बिना पैर के चल पाएगा कैसे कोई बोलो! मुझसे कौन बड़ा है बतलाओ, मुँह खोलो।
आँख ः दुनिया की सुंदरता सारी, सुंदर सूरज किरणें प्यारी । जगमग तारे, चंदा मामा बड़े दुलारे । मैं ही तो सब दिखलाती हूँ, जीवन में खुशियाँ लाती हूँ ।
कान ः क्या मेरी बात कोई नहीं सुनेगा ?
हाथ ः क्यों नहीं ? तुम भी अपना गुण बखान लो । आखिर आँख जब अपने को ही बड़ा कहती है तो तुम क्यांे पीछे रहो।
कान ः सुनो कान की बात, कान से करो न आनाकानी । बिना कान के राग-रागिनी किसने है पहचानी ? बिना मदद के मेरी, संगीत सुनोगे कैसे ?
पैर ः अच्छा नाक जी, अब आप अपना काम बताइए ।
नाक ः (नकियाते हुए) मेरे बिना कोई कुछ सूँघ नहीं सकता। मैं ही खुशबू और बदबू का भेद करती हूँ । इतना ही कहती हूँकि-नाक न कटने पाए, रखना ध्यान; सिर्फ यही देना है मुझको ज्ञान ।
जीभ ः खूब सबने अपनी बड़ाई की । बुराई तो किसी में कुछ है ही नहीं। वाह ! (थिरककर) मगर बताओ बिना जीभ के क्या कोई कुछ बोला । जीभ मिली थी, इसीलिए सबने अपना मुँह खोला । मगर बोलने के पहले अपनी बातों को तौलाे । तो जनाब, जीभ शरीर के सब अंगांे में बड़ी है ।
पेट ः (पेट पर हाथ फेरते हुए) वाह ! भाई वाह ! सबने अपनी अच्छी बड़ाई की । अरे भैया, यह तो देख लेते कि पेट में ही खाना पहुँचता है । उसे पचाने से शरीर को बल मिलता है और उसी बल पर हाथ, पैर, नाक, कान, जीभ सब उछलते हैं। एक दिन मैं खाना न पचाऊँ, तो सब टें बोल जाएँ। समझ गए तुम मेरा काम, मुझे न कहना बुद्धूराम ।
चेहरा ः अब तो मैं ही बचा हूँ जी । सबने अपने-अपने काम बता दिए हैं। लेकिन शरीर में जिसकी सुंदरता बखानी जाती है, वह चेहरा ही तो है । इस चेहरे को देख कभी तो-कोई कहता-फूल खिला। सुनो, ध्यान से मेरे भाई, चेहरा ही है चीज बड़ी। चेहरे में है नाक खड़ी । अधिक क्या कहूँ, बिना चेहरे के आदमी अधूरा है ।
नाक ः (नकियाते हुए) हमने अपने-अपने काम तो बता दिए अपनी बड़ाई भी कर ली लेकिन सबमें बड़ा कौन ठहरा ?
सभी ः (एक साथ) मैं बड़ा हूँ । मैं बड़ा हूँ । (सभी अंधों में काना राजा बनने की कोशीश कर रहे थे ।)
पेट ः भाइयो, आप शांत रहिए । सबमें मैं ही बड़ा लगता हूँ ।
पैर ः (बात काटकर) चुप रहिए, आप बड़े नहीं हैं।(सूत्रधार आताहै।)
सूत्रधार ः (दर्शकों से) और यही था हमारा सम्मेलन अंगों का । सबको धन्यवाद और नमस्कार । अंगों में बड़ा-छोटा कोई नहीं है । अंगों का बड़प्पन आपसी सहयोग में है ।
(परदा गिरता है ।)