यह हार एक विराम है
जीवन महा-संग्राम है
तिल-तिल मिटँूगा पर दया की भीख मैं लँूगा नहीं ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहँूगा नहीं
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।
लघुता न अब मेरी छुआे
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थत्यागँूगा नहीं ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागँूगा नहीं ।
वरदान मॉंगूँगा नहीं ।।
– शिवमंगल सिंह ‘सुमन’