5. गोव: जैसा मैंने देखा

गोवा ! यह नाम सुनते ही सभी का मन तरंगायित हो उठता है और हो भी क्‍यों न, यहाँ की प्रकृति, आबोहवा और जीवनशैली का आकर्षण ही ऐसा है कि पर्यटक खुद-ब-खुद यहाँ खिंचे चले आते हैं। देश के एक काेने में स्‍थित होने के बावजूद यह छोटा-सा राज्‍य प्रत्‍येक पर्यटक के दिल की धड़कन है । यही कारण है कि मैं भी अपने परिवार के साथ इंदौर से गोवा जा पहुँचा। खंडवा से मेरे साढ़ू साहब भी सपरिवार हमारे साथ शामिल हो गए ।

२३ नवंबर को जब ‘गाेवा एक्‍सप्रेस’ मड़गाँव रुकी तो सुबह का उजास हो गया था । एक टैक्‍सी के हॉर्न ने मेरा ध्यान उसकी ओर खींचा और हम फटाफट उसमें बैठ गए । टैक्‍सी एक पतली-सी सड़क पर दौड़ पड़ी । शीतल हवा के झोंकों से मन प्रसन्न हो गया और यात्रा की सारी थकान मिट गई । मैं सोचने लगा कि पर्यटन का भी अपना ही आनंद है । जब हम जीवन की कई सारी समस्‍याओं से जूझ रहे हों तो उनसे निजात पाने का सबसे अच्छा तरीका पर्यटन ही है । बदले हुए वातावरण के कारण मन तरोताजा हो जाता है तथा शरीर को कुछ समय के लिए विश्राम मिल जाता है ।

 कुछ देर बाद हमारी टैक्‍सी मडगाँव से पाँच किमी दूर दक्षिण में स्‍थित कस्‍बा बेनालियम के एक रिसॉर्ट में आकर रुक गई । यह रिसॉर्टहमने पहले से बुक कर लिया था । इसलिए औपचारिक खानापूर्ति कर हम आराम करने के इरादे से अपने-अपने स्‍यूट मंे चले गए। इससे पहले कि हम कमरों से बाहर निकलें, मैं आपको गाेवा की कुछ खास बातें बता दूँ । दरअसल, गोवा राज्‍य दो भागों में बँटा हुआ है । दक्षिण गोवा जिला तथा उत्‍तर गोवा जिला । इसकी राजधानी पणजी मांडवी नदी के किनारे स्‍थित है । यह नदी काफी बड़ी है तथा वर्षभर पानी से भरी रहती है । फिर भी समुद्री इलाका होने के कारण यहाँ मौसम में प्रायः उमस तथा हवा में नमी बनी रहती है । शरीर चिपचिपाता रहता है लेकिन मुंबई जितना नहीं, क्‍योंकि यहाँ का क्षेत्र हरीतिमा से भरपूर है फिर भी धूप तो तीखी ही होती है ।

यांे तो गोवा अपने खूबसूरत सफेद रेतीले तटों, महँगे होटलों तथा खास जीवन शैली के लिए जाना जाता है लेकिन इन सबके बावजूद यह अपने में एक सांस्‍कृतिक विरासत भी समेटे हुए है ।

यहाँ की शाम बड़ी अच्छीहोती है तो चलो, इस शाम का आनंद लेने – विनय शर्मा प्रस्‍तुत यात्रा वर्णन के माध्यम से लेखक ने गोवा के सुंदर समुद्री किनारों, वहाँ की जीवनशैली, त्‍योहार आदि का बड़ा ही मनोरम वर्णन किया है । जन्म ः १९७३, उज्‍जैन (म.प्र.) परिचय ः विनय शर्मा का अधिकांश लेखन उनके अनुभवों पर आधारित रहा है। आपकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में नियमित छपती रहती हैं । यात्रा वत्तां ृ त आपकी पसंदीदा विधा है । साथ ही आपने व्यंग्य और ललित निबंध भी लिखे हैं । कृतियाँ ः ‘आनंद का उद्गम अमरकंटक’ (ललित निबंध), ‘चित्र की परीक्षा’ (व्यंग्‍य), ‘अमरनाथ यात्रा ः प्रकृति के बीच’ ‘कोइंबतूर में कुछ दिन’(यात्रा वत्तां ृ त) आदि । परिचय गद्‌य संबंधी १8 19 के लिए बेनालियम बीच की ओर चलें । आप भी चलें क्‍योंकि बहुत ही खूबसूरत तथा शांत जगह है बेनालियम । दिन भर की थकान तथा उमस भरी गरमी के बाद शाम को बीच पर जाना बड़ा अच्छा लग रहा था । रिसॉर्ट से बीच की दूरी कोई एक किमी ही थी लेकिन जल्‍दी-जल्‍दी चलने के बाद भी यह दूरी तय हो ही नहीं पा रही थी । अरब सागर देखने का उत्‍साह बढ़ता ही जा रहा था । तभी अचानक लहरों की आवाज सुनाई दी जो किसी रणभेदी की तरह थी । हम सभी दौड़ पड़े । सड़क पीछे छूट गई थी इसलिए रेत पर तेजी से दौड़ना मुश्किल हो रहा था, फिर भी धँसे हुए पैरों को पूरी ताकत से उठा-उठाकर भाग रहे थे । खूबसूरत समुंदर देखते ही मैं उससे जाकर लिपट गया । इधर बच्चे रेत का घर बनाने में जुट गए। लहरें उनका घर गिरा देतीं तो वे दूसरी लहर आने के पहले फिर नया घर बनाने में जुट जाते। यही क्रम चलता रहा । मैंने इन बच्चों से सीखा कि जीवन में आशावाद हो तो कोई काम असंभव नहीं है । शाम गहराने पर हम किनारे पर बैठ गए। मानो हर लहर कह रही हो कि बनने के बाद मिटना ही नियति है । यही जीवन का सत्‍य भी है ।

यहाँ एक मजेदार दृश्य भी देखने को मिला । लहरों की आवाज के बीच पक्षियों की टीं-टीं-टीं की आवाज भी आपका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है । दरअसल, ये पक्षी लहरों के साथ बहकर आई मछलियों का शिकार करने के लिए किनारे पर ही मँड़राते रहते हैं लेकिन जब तेज हवा के कारण एक ही दिशा में सीधे नहीं उड़ पाते हैं तो सुस्‍ताने के लिए किनारे पर बैठ जाते हैं । यहाँ बैठे कुत्‍तों को इसी बात का इंतजार रहता है । मौका मिलते ही वे इनपर झपट पड़ते हैं लेकिन बेचारे कुत्‍तों काे सफलता कम ही मिल पाती है । पक्षियों का बैठना, कुत्‍तों का दौड़ना और पक्षियाें का टीं-टीं-टीं कर उड़ जाना, यह दृश्य सैलानियों का अच्छा मनोरंजन करता है । इधर जैसे ही सूर्य देवता ने विदा ली वैसे ही चंद्रमा की चाँदनी में नहाकर समुद्र का नया ही चेहरा नजर आने लगा । अब समुद्र स्‍याह और भयावह दिखने लगा ।

अगले दिन हमने बस से गाेवा घूमने की योजना बनाई । वैसे घूमने-फिरने के लिए यहाँ बाइक आदिकिराए पर मिल जाती है औरउनपर ही घूमने का मजा भी आता है लेकिन बच्चों के कारण हमने बस से जाना मुनासिब समझा । यहाँ ‘सी फूड’ की अधिकता होने के कारण शाकाहारी पर्यटकों को सुस्वादु भोजन की समस्‍या से भी दो-चार होना पड़ता है । काफी भटकने के बाद अच्छा भोजन मिल गया तो समझो किस्‍मत और जेब तो ढीली हो ही गई । यह समस्‍या हमें पहले से पता थी । इसलिए हम अपने रिसॉर्ट के स्‍यूट में उपलब्‍ध किचन में ही भोजन करते थे।

सबसे पहले हम अंजुना बीच पहुँचे । गोवा में छोटे-बड़े करीब 4० बीच हैं लेकिन प्रमुख सात या आठ ही हैं । अंजुना बीच नीले पानीवाला, पथरीला बहुत ही खूबसूरत है । इसके एक ओर लंबी-सी पहाड़ी है, जहाँ से बीच का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है । समुद्र तक जाने के लिए थोड़ा नीचे उतरना पड़ता है । नीला पानी काले पत्‍थरों पर पछाड़ खाता रहता है । पानी ने काट-काटकर इन पत्‍थरों में कई छेद कर दिए हैं जिससे ये पत्‍थर कमजोर भी हो गए हैं । साथ ही समुद्र के काफी पीछे हट जाने से कई पत्‍थरों के बीच में पानी भर गया है । इससे वहाँ काई ने अपना घर बना लिया है । फिसलने का डर हमेशा लगा रहता है लेकिन संघर्षांे में ही जीवन है, इसलिए यहाँ घूमने का भी अपना अलग आनंद है । यहाँ युवाओं का दल तो अपनी मस्‍ती में डूबा रहता है, लेकिन परिवार के साथ आए पर्यटकों का ध्यान अपने बच्चों को खतरों से सावधान रहने के दिशानिर्देश देने में ही लगा रहता है । मैंने देखा कि समुद्र किनारा होते हुए भी बेनालियम बीच तथा अंजुना बीच का अपना-अपना सौंदर्यहै । बेनालियम बीच रेतीला तथा उथला है । यह मछुआरों की पहली पसंद है । यहाँ सुबह-सुबह बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़ी जाती हैं लेकिन मजे की बात यहहै कि इतनी सारी मछलियाँ स्‍थानीय बाजारों में ही बेची जाती हैं । इनका निर्यात बिलकुल भी नहीं होता है । इसके विपरीत अंजुना बीच गहरा और नीले पानीवाला है । यह बॉलीवुड की पहली पसंद है । यहाँ कई हिट फिल्‍मों की शूटिंग हुई है । दोनों बीच व्यावसायिक हैं पर मूल अंतर व्यवसाय की प्रकृति का है । इसके बाद हम लोग दिन भर पणजी शहर देखते रहे ।

घूम-फिरकर शाम को हम कलिंगवुड बीच पर पहुँचे । यह काफी रेतीला तथा गोवा का सबसे लंबा बीच है जो ३ से 4 किमी तक फैला है। यहाँ पर्यटक बड़ी संख्या मंे आते हैं । यही कारण है कि यह स्‍थानीय लोगों के व्यवसाय का केंद्र भी है । यहाँ कई प्रकार के वाटर स्‍पोट्‌र्सहोते हैं जिनमें कुछ तो हैरतअंगेज हैं, जिन्हें देखने में ही आनंद आता है । आप भी अपनी रुचि के अनुसार हाथ आजमा सकते हैं । मैंने कई खेलों में हिस्‍सा लिया, लेकिन सबसे अधिक रोमांच पैराग्‍लाइडिंग में ही आया । काफी ऊँचाई से अथाह जलराशि को देखना जितना विस्‍मयकारी है, उतना ही भयावह भी । दूर-दूर तक पानी-ही-पानी, तेज हवा और रस्‍सियों से हवा में लटके हम । हम यानी मैं और मेरी पत्‍नी । दोनों डर भी रहे थे और खुश भी हो रहे थे । डर इस बात का कि छूट गए तो समझो गए और खुशी इस बात की कि ऐसा रोमांचक दृश्य पहली बार देखा । सचमुच अद्‌भुत !

हम यहाँ चार-छहदिन रहे लेकिन हमारी एक ही दिनचर्या रही। सुबह जल्‍दी उठना, फटाफट नाश्ता करना और दिन भर घूम-फिरकर, थककर शाम को रिसॉर्ट आकर थकान मिटाने के लिए पूल में तैरना ! एक दिन कोलवा बीच पर हमने बोटिंग का भी आनंद लिया। यहाँ हमने डॉल्‍फिन मछलियाँ देखीं । हालाँकि ये छोटी थीं पर बच्चों ने अच्छा आनंद लिया ।

इस दौरान यहाँ नवरात्रि तथा दशहरा पर्व मनाने का सौभाग्‍य भी प्राप्त हुआ । उत्‍तर भारत में जिस तरह हर घर तथा गली-मोहल्‍ले में मांॅ दुर्गा की घट स्‍थापना कर तथा लड़कियों द्‌वारा गरबा कर पर्व मनाया जाता है, ऐसा ही यहाँ भी होता है । रावण का पुतला कहीं भी नहीं जलाया जाता है । सुबह से लोग अपने वाहनों की सफाई कर उनकी पूजा करते हैं और शाम को भगवान की एक पालकी मंदिर ले जाई जाती है । इसके बाद एक पेड़ विशेष की पत्‍तियाँ तोड़कर लोग एक-दूसरे को देकर बधाई देते हैं । सबकी अपनी-अपनी सांस्‍कृतिक परंपरा है ।

इतने कम दिनों में मैं गोवा को पूरा देख-समझ तो नहीं पाया पर इतना जरूर समझ गया कि पश्चिमी फैशन और सभ्‍यता में रचा-बसा होने के बावजूद यह भारतीय संस्कृति को पूरी तरह से आत्‍मसात किए हुए हैं। पर्यटक फैशन के रंग में कुछ देर के लिए भले ही स्‍वयं को रँगकर चले जाते हों लेकिन स्‍थानीय लोग अपनी सांस्‍कृतिक परंपरा की उँगली अब भी पकड़े हुए हैं ।