8. उड़ान

अँधेरे के इलाके में किरण माँगा नहीं करते

 जहाँ हो कंटकों का वन, सुमन माँगा नहीं करते ।

 जिसे अधिकार आदर का, झुका लेता स्‍वयं मस्‍तक

 नमन स्‍वयमेव मिलते हैं, नमन माँगा नहीं करते ।

 परों में शक्‍ति हो तो नाप लो उपलब्ध नभ सारा

 उड़ानाें के लिए पंछी, गगन माँगा नहीं करते ।

 जिसे मन-प्राण से चाहा, निमंत्रण के बिना उसके

 सपन तो खुद-ब-खुद आते, नयन माँगा नहीं करते ।

 जिन्होंने कर लिया स्‍वीकार, पश्चात्‍ताप में जलना

 सुलगते आप, बाहर से, अगन माँगा नहीं करते ।

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 जिसकी ऊँची उड़ान होती है,

 उसको भारी थकान होती है ।

 बोलता कम जो देखता ज्यादा,

 आँख उसकी जुबान होती है ।

 बस हथेली ही हमारी हमको,

 धूप में सायबान होती है ।

 एक बहरे को एक गूँगा दे,

 जिंदगी वो बयान होती है ।

 तीर जाता है दूर तक उसका,

 कान तक जो कमान होती है ।

 खुशबू देती है, एक शायर की,

 जिंदगी धूपदान होती है ।

– चंद्रसेन विराट