(दूसरी इकाई) ११. समता की ओर
बीत गया हेमंत भ्रात, शिशिर ॠतु आई ! प्रकृति हुई द्युतिहीन, अवनि में कुंझटिका है छाई । पड़ता खूब तुषार पद्मदल तालों में बिलखाते, अन्यायी नृप के दंडों से यथा […]
बीत गया हेमंत भ्रात, शिशिर ॠतु आई ! प्रकृति हुई द्युतिहीन, अवनि में कुंझटिका है छाई । पड़ता खूब तुषार पद्मदल तालों में बिलखाते, अन्यायी नृप के दंडों से यथा […]
बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है । बूढ़ी काकी में जिह्वा स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने […]
[अमृतलाल नागर जी से विश्वनाथ प्रसाद तिवारी जी की बातचीत ] तिवारी जी : नागर जी, मैंआपको आपकेलेखन केआरंभ काल की ओर लेचलना चाहता हूँ। जिस समय आपने लिखना शुरू […]
चाहे सभी सुमन बिक जाएँ चाहे ये उपवन बिक जाएँ चाहे सौ फागुन बिक जाएँ पर मैं गंध नहीं बेचूँगा अपनी गंध नहीं बेचूँगा ।। जिस डाली ने गोद […]
प्रिय सरोज, जिस आश्रम की कल्पना की है उसके बारे में कुछ ज्यादा लिखूँ तो बहन को सोचने में मदद होगी, आश्रम यानी होम (घर) उसकी व्यवस्था में या संचालन […]
हम उस धरती के लड़के हैं, जिस धरती की बातें क्या कहिए; अजी क्या कहिए; हाँ क्या कहिए । यह वह मिट्टी, जिस मिट्टी में खेले थे यहाँ ध्रुव-से बच्चे […]
हमने अपने जीवन में बाबू जी के रहते अभाव नहीं देखा । उनके न रहने के बाद जो कुछ मुझपर बीता, वह एक दूसरी तरह का अभाव था कि मुझे […]
मेरे घर छापा पड़ा, छोटा नहीं बहुत बड़ा वे आए, घर में घुसे, और बोले-सोना कहाँ है ? मैंने कहा-मेरी आँखों में है, कई रात से नहीं सोया हूँ वे […]
गुलामी की प्रथा संसार भर में हजारों वर्षों तक चलती रही । उस लंबे अरसे में विद्वान तत्त्ववेत्ता और साधु-संतों के रहते हुए भी वह चलती रही। गुलाम लोग खुद […]
कंगाल इस वर्ष बड़ी भीषण गरमी पड़ रही थी । दिन तो अंगारे से तपे रहते ही थे, रातों में भी लू और उमस से चैन नहीं मिलता था । […]